माहवारी यानि पीरियड्स (periods in hindi) महिलाओं में होने वाली एक प्राकृतिक क्रिया है जिसके बारे में जानना हर बढ़ती उम्र की लड़की के लिए ज़रूरी है |
परन्तु आज भी काफ़ी युवा लड़कियों को इस क्रिया के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं हैं जो ऐसे समय में होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों को अपनाना और भी कठिन बना देता है |
आइए जानते है माहवारी के हर पहलू को करीब से |
Periods in hindi – क्या होती है माहवारी ?
प्यूबर्टी के दौरान लड़कियों में होने वाला सबसे एहम शारीरिक बदलाव है माहवारी का शुरू होना |
डॉ. प्रीति अरोरा धमीजा, सीताराम भरतिया की अनुभवी obstetrician – gynecologist, कहतीं हैं – “प्यूबर्टी एक ऐसा समय है जब बच्चों के प्रजननीय अंग पूरी तरह से विकसित हो जाते है और वे प्रजनन के भारत लिए सक्षम हो जाते है | युवा लड़कियों में जब यह पड़ाव आता है तब उनके मासिक धर्म (menstruation meaning in hindi) शुरू हो जाते है | इसका मतलब यही है कि अब उनका शरीर प्रजनन करने के योग्य हो चुका है |”
“लड़कियों में प्यूबर्टी की क्रिया आम तौर पर 11 साल की उम्र से शुरू हो जाती है जिसके पश्चात उनको माहवारी (periods in hindi) होने लगती है | ये आयुवर्ग आगे-पीछे भी हो सकती है |”
लेकिन सवाल यह है कि महिलाओं के शरीर में माहवारी की क्रिया होती कैसे है ?
Periods kyu hote hai?
लड़कियों में मासिक धर्म शुरू होने का मतलब है उनके अंडाशयों का विकसित हो जाना | इसका मतलब है कि उनके अंडाशय अब अंडे बनाने के काबिल हो गए है |
डॉ. प्रीति समझाती हैं – “मासिक धर्म (menstruation meaning in hindi) की क्रिया की एक मुख्य भूमिका है – गर्भधारण (pregnancy) करने में सहायता करना | मासिक चक्र के शुरू होने पर हर महीने महिलाओं के दो अंडाशयों में से कोई एक अंडा बनाके गर्भाशय नाल में रिलीज़ करता है जिसे ovulation कहा जाता है | इसके साथ-साथ शरीर दो तरह के हॉर्मोन्स बनाता है – एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टरोन | ये हॉर्मोन्स गर्भाशय की परत को मोटा करते है ताकि गर्भाधान होने पर फर्टिलाइज़्ड अंडा उस परत से लग कर पोषण पा सके | यह परत रक्त और म्यूकस से बनी होती है |”
जब अंडा नर शुक्राणु से मिलकर फर्टिलाइज़ नहीं हो पाता तब गर्भाशय की परत उस अंडे के साथ रक्त के रूप में योनि से बाहर निकल आती है | इस क्रिया को माहवारी (periods in hindi) या मासिक धर्म कहते है |
गर्भधारण करने पर क्या होता है ?
हर महीने एक औरत का शरीर गर्भधारण के लिए अपने आप को तैयार करता है | गर्भाशय की परत फर्टिलाइज़्ड अंडे को लेने के लिए मोटी हो जाती है | जब अंडा नर शुक्राणु से मिल कर गर्भाधान कर लेता है तब यह जाकर गर्भाशय की परत से लग कर बढ़ने लगता है | क्योंकि अब उस परत से अंडे को पोषण मिल रहा है, यह झड़ता नहीं है और प्रसव होने तक (पूरे 9 महीनों के लिए) मासिक धर्म रुक जाती है |
प्रसव के पश्चात उस परत की भूमिका समाप्त हो जाती है और वह झड़ कर योनि से बाहर निकल आता है|
“आम तौर पर मासिक चक्र (menstrual cycle in hindi) 21 से लेकर 35 दिनों तक का होता है परन्तु यह हर बार ज़रूरी नहीं | हर लड़की का मासिक चक्र एक समान नहीं होता | प्यूबर्टी के शुरूआती महीनों में मासिक चक्र का लम्बा होना स्वाभाविक है | ज़्यादातर महिलाओं के लिए बढ़ती उम्र के साथ-साथ यह चक्र नियमित हो जाती है |”
क्योंकि मासिक धर्म में हॉर्मोन्स जैसी कई चीज़ों की भूमिका होती है, कभी-कभी कई कारणों की वजह से माहवारी (periods in hindi) में दिक्कतें आ सकती हैं |
आइए माहवारी से जुड़ी कुछ परेशानियों के बारे में विस्तार से जानते है |
अनियमित माहवारी यानि irregular periods (in hindi)
मासिक धर्म संबंधित परेशानियों में सबसे आम दिक्कत है अनियमित माहवारी का होना |
डॉ. प्रीति कहतीं हैं – “अनियमित माहवारी के कई पहलू है | मासिक धर्म में निम्नलिखित किसी भी परेशानी के होने से उसको अनियमित माहवारी कहा जा सकता है” –
- मासिक चक्र का 21 दिनों से छोटा या 35 दिनों से ज़्यादा होना
- माहवारी के वक़्त सामान्य से अधिक मात्रा में खून निकलना (heavy bleeding या menorragia)
- मासिक चक्र का हर बार बदल जाना
- तीन या उससे ज़्यादा महीनों तक माहवारी न आना (amenorrhea)
- दो माहवारी के बीच में अनियमित रूप से खून निकलना
Menorragia
जब माहवारी के समय सामान्य रूप से ज़्यादा खून निकलने लगता है या फिर माहवारी 7 से ज़्यादा दिनों के लिए चलती रहती है तब उसको मेडिकल शब्दों में menorrhagia कहते है |
“अक्सर युवा लड़कियों को ज़्यादा जानकारी न होने की वजह से थोड़ी अधिक ब्लीडिंग होने पर ही लगता है की उनमे कुछ परेशानी है | परन्तु ज़रूरी है कि वे जाने कि menorrhagia में कुछ विशेष संकेत होते है जैसे कि – अधिक ब्लीडिंग के कारण हर दूसरे घंटे अपना पैड बदलना, हफ़्ते भर से ज़्यादा दिनों तक रक्त निकलना, रक्त के थक्कों (blood clots) का निकलना, दो से ज़्यादा पैड्स पहनना और प्रायः माहवारी के दौरान असहनीय दर्द होना |”
Menorrhagia कई कारणों से हो सकती है जैसे कि – हॉर्मोन्स का अनियंत्रित होना, रक्त की कोई बीमारी होना, गर्भाशय और अंडाशयों की बीमारी होना या फिर जीवनशैली में गड़बड़ होना (ज़्यादा तनाव लेना, थाइरोइड की बीमारी होना) |
माहवारी (periods in hindi) न होना (amenorrhea)
Amenorrhea को समझाते हुए डॉ. प्रीति कहतीं हैं “जब किसी युवा लड़की को प्यूबर्टी की शुरुआत होने के बावजूद,15-16 साल तक माहवारी नहीं होती है या फिर नियमित रूप से होने वाली माहवारी अचानक ही होना बंद हो जाती है तो उसको एमेनोरीआ कहते है |”
“गौर करने वाली बात यह है की प्यूबर्टी से पहले, गर्भधारण और मीनोपॉज के पष्चात माहवारी अगर न हो तो यह एक सामान्य बात है | इन तीनों परिस्तिथियों के अलावा अगर माहवारी रुक जाए तो यह एक चिंताजनक बात हो सकती है |”
युवा लड़कियों में माहवारी समय पर शुरू न होना किसी शारीरिक असामन्यता की वजह से हो सकती है | अक्सर प्रजनन प्रणाली के अंगों का कमज़ोर होना इसका कारण होता है |
“लेकिन नियमित माहवारी का एकदम से बंद हो जाना PCOD जैसी बीमारी का संकेत भी हो सकता है |”
क्या है PCOD ?
पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिसॉर्डर (PCOD) एक हॉर्मोनल बीमारी है जिसमे अंडाशयों में बहुत सारे छोटे-छोटे थैलियों (follicles) के बनने के कारण वे नियमित रूप से अंडे नहीं बना पाते है | अण्डों के रिलीज़ न होने से माहवारी रुक जाती है और मासिक चक्र अनियमित हो जाती है |
“यह बीमारी अक्सर हॉर्मोन्स में असंतुलन आने पर होती है |”
PCOD के सबसे एहम लक्षण है – अनियमित माहवारी होना या बहुत समय तक माहवारी न होना, शरीर और चेहरे पर अधिक मात्रा में बाल उगना और बहुत से मुँहासे होना |
डॉ. प्रीति का कहना है – “ज़रूरी है की महिलाएँ इन लक्षणों को समय पर पहचाने ताकि जल्द से जल्द इसका इलाज हो सके | जीवनशैली में आसान से बदलाव करके PCOD को मैनेज किया जा सकता है |”
Dysmenorrhoea – माहवारी (periods in hindi) के समय अधिक से ज़्यादा पीड़ा होना
माहवारी में होने वाली और एक आम परेशानी है dysmenorrhea |
Dysmenorrhea होने पर महिलाओं को पेट के निचले हिस्से में गंभीर रूप से दर्द होता है | यह दर्द माहवारी शुरू होने के कुछ दिन पहले से ही होने लगता है और लगभग 1 से 3 दिनों तक रहता है |
“इस हालत में पीड़ा इतनी अधिक हो जाती है की महिलाएँ अक्सर अपने रोज़मर्रा के काम नहीं कर पाती | यह दर्द युवा लड़कियों को भी विद्यालय से छुट्टी लेने पर मजबूर कर देता है |”
परन्तु ध्यान देने वाली बात यह है कि माहवारी के समय इतना ज़्यादा दर्द होना कोई सामान्य बात नहीं हैं | इसके होने पर हर महिला को अपनी जांच अवश्य करानी चाहिए क्योंकि dysmenorrhea एन्डोमीट्रीओसिस जैसी गंभीर बीमारी के कारण भी हो सकती है |
सही समय पर जांच किसी आने वाली दुविधा को टालने में मदद करता है |
मासिक धर्म एक महिला के जीवन का एक एहम हिस्सा होता है जो जीवनभर उनका साथ निभाता है | परन्तु एक उम्र के बाद महिलाओं को माहवारी होना पूरी तरह से बंद हो जाता है | इसको मीनोपॉज कहते है |
क्या होता है मीनोपॉज
जब महिला 45 से 55 की उम्र तक पहुँच जाती है तो उनको माहवारी (periods in hindi) होना हमेशा के लिए बंद हो जाता है | इसको मीनोपॉज कहते है |
डॉ. स्वस्ति समझतीं हैं – “एक उम्र के बाद महिलाओं के अंडाशय अंडे बनाना बंद कर देते है | इससे गर्भाशय की परत भी मोटी होनी बंद हो जाती है जिससे माहवारी नहीं होती | इसका यही मतलब होता है कि अब वह माँ नहीं बन पाएंगी |”
मीनोपॉज के शुरू होने पर महिला के शरीर में कई बदलाव होते है और उन्हें कई चीज़े महसूस होती है जैसे की – hot flushes ( अचानक से तेज़ गर्मी लगना), नींद में परेशानी आना, बालों का झड़ना, योनि में सूखापन आना और मनो-दशा में बदलाव आना |
“महिलाओं के लिए ऐसे समय इन बदलावों से जूझना कठिन हो सकता है परन्तु सही जानकारी से और अपनों के साथ से मेनोपॉज़ जैसे पड़ाव को आसानी से पार किया जा सकता है |”
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यह लेख डॉ. प्रीति अरोरा धमीजा के सहायता से लिखा गया है। डॉ. डॉ. प्रीति जानी-मानी स्त्री रोग विशेषयज्ञ है जो अपने आशावादी स्वाभाव के लिए जानी जाती है।
Medically Reviewed by Dr. Priti Arora Dhamija
MBBS, Maulana Azad Medical College, Delhi (1999); M.D, Lady Hardinge Medical College (2004); DNB Obstetrics & Gynecology (2004); Diploma in Pelvic Endoscopy, Kiel, Germany (2014)
Experience: 17 years
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