गर्दन पर लिपटी हुई नाल – क्या शिशु के स्वास्थ्य के लिए घातक है ?

दिव्या अपने नवें महीने में जब अल्ट्रासाउंड (ultrasound) कराने गई तो उसे बताया गया कि उसे सिज़ेरियन के लिए जाना चाहिए क्यूंकि उसकी बच्चे की गर्दन पर नाल या कॉर्ड (cord around the neck ) दो बार लिपटी हुई है।  

गर्भावस्‍था के शुरुआती हफ्ते से हीं दिव्या नॉर्मल डिलीवरी (normal delivery) की तैयारी कर रही थी।  वह व्यायाम करती थी, संतुलित भोजन खाती थी और antenatal classes में भी भाग लेती थी। अब तक सब ठीक चल रहा था और वह नार्मल डिलीवरी के लिए बहुत इच्छुक भी थी।  

सिज़ेरियन की सलाह सुनने पर उसने हिम्मत नहीं हारी, और वह अपने पति के साथ सीताराम भरतिया हॉस्पिटल में दूसरी परामर्श (second opinion) के लिए आई।

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डॉ अनीता सभरवाल आनंद ने कहा “मैंने ऐसे बहुत से बच्चों की डिलीवरी करवाई है जिनके गर्दन पर नाल लिपटी हुई थी । कुछ ऐसे भी बच्चे थे जिनके गर्दन पर नाल चार बार लिपटी हुई थी (four loops of cord aorund the neck)।”

दिव्या यह सुनकर चिंता मुक्त हो गई।  

कुछ हफ्तों के बाद वह सीताराम भरतिया हॉस्पिटल, प्रसव पीड़ा (labour pain) में आई।  दिव्या की बेटी के जन्म के दौरान, उसके गर्दन में कॉर्ड लिपटी हुई थी लेकिन वह बिलकुल सुरक्षित पैदा हुई।  

देखिए पहली बार माँ बनी दिव्या का उत्साहपूर्ण अनुभव :

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क्या गर्दन पर लिपटी हुई नाल बच्चे के स्वास्थ्य के लिए घातक है ?

अक्सर तीन में से एक बच्चा गर्दन में कॉर्ड लिपटे हुए पैदा होता है और वो भी बिना किसी प्रतिकूल नतीजे के।  फिर भी ज़्यादातर माँ- बाप सोचते है कि कॉर्ड एक ऐसी रस्सी होती है जो प्रसव के दौरान बच्चे का गला घोंट सकती है।  

नाल या नाभि रज्जु (ubilical cord) ½ मीटर से ज़्यादा लम्बी होती है और बच्चे को योनि (birth canal) में नीचे आराम से उतरने देती है। यह नाल कोमल और लिजलिजे-तरल पदार्थ (jelly-like substance) से भरी होती है जो रक्त धमनियाँ (blood vessels) पर पड़ रहे खिचाव से उसे सुरक्षा प्रदान करती है। यह रक्त धमनियाँ ही बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्व देती हैं।  

कभी-कभी, यह रक्त धमनियाँ दब जातें है जिससे बच्चे को ऑक्सीजन का प्रवाह कम मिलता है। परंतु आपके डॉक्टर बच्चे की धड़कन पर नज़र रखते हैं और ऐसी स्थिति होने पर, अगर ज़रुरत पड़े तो तत्काल सिज़ेरियन (emergency c-section) करते हैं। ऐसे स्थिति में हमेशा सिज़ेरियन की ज़रुरत नहीं होती है। कई बार सिर्फ करवट या पोज़िशन बदलने से भी यह दबाव कम हो जाता है।

परंतु गर्भवती माँ को ध्यान में रखना चाहिए कि सिज़ेरियन करने की ज़रुरत बहुत कम परिस्थितियों में पड़तीं है।

नाल के गले में लिपटना एक आम बात है, अतः यह चिंता का विषय एवं कारण नहीं होना चाहिए और न ही सुनियोजित सिज़ेरियन करने का।

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यह ब्लॉग  डॉ.अनीता सभरवाल आनंद की सहायता से लिखा गया है | डॉ.अनीता एक अनुभवी obstetrician – gynecologist है जिन्हें नार्मल डिलीवरी में खास दिलचस्पी है और वह हर लो-रिस्क गर्भवती महिला को एक नार्मल डिलीवरी के लिए प्रोत्साहन करने में विश्वास रखती हैं |

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Dr Anita Sabherwal Anand-sitarambhartiaMBBS, Lady Hardinge Medical College, University of Delhi (1992); MD (Obstetrics & Gynaecology), Lady Hardinge Medical College, University of Delhi (1997); DNB Secondary (Obstetrics & Gynaecology), National Board of Medical Education, New Delhi (1999)

 

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